जीवन की डाली से, सूखे पत्तों की तरह, झड़़ जाते हैं झूठे रिश्ते नाते। जीवन की डाली से, सूखे पत्तों की तरह, झड़़ जाते हैं झूठे रिश्ते नाते।
भावनाओं से नहीं भावनाओं से नहीं
क्योंकि हमें तो यहां आना ही था यही सोचकर इस मन को कई बार बहलाया है। क्योंकि हमें तो यहां आना ही था यही सोचकर इस मन को कई बार बहलाया है।
देखा जाये तो गलती किसकी, जो कहता है या... देखा जाये तो गलती किसकी, जो कहता है या...
खिले हैं गांवों में भी, नफरत के फूल धीरे-धीरे खिले हैं गांवों में भी, नफरत के फूल धीरे-धीरे
साथ सभी देंगे मिलकर, यूं ही खुशियां लेकर आए, साथ सभी देंगे मिलकर, यूं ही खुशियां लेकर आए,